कर्णप्रयाग (चमोली): डॉ. शिवानंद नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर भूगोल विभाग द्वारा व्याख्यान, भाषण और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गौरैया के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना था।
प्रतियोगिताओं के विजेता:
निबंध प्रतियोगिता में सुहानी प्रथम और रोशनी द्वितीय स्थान पर रहीं। वहीं, भाषण प्रतियोगिता में अंकित कुमार ने प्रथम और निलाक्षी ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
गौरैया पर मंडरा रहा संकट
मुख्य वक्ता डॉ. आर. सी. भट्ट ने अपने व्याख्यान में बताया कि कभी हर सुबह अपनी चहचहाहट से जगाने वाली गौरैया अब संकटग्रस्त प्रजातियों में गिनी जा रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में पक्षियों की लगभग 700 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें गौरैया प्रमुख है, लेकिन अब इसके अस्तित्व पर संकट गहरा रहा है। आधुनिकता के कारण पारंपरिक घरों की जगह नए डिजाइन के मकानों ने ले ली है, जिससे गौरैया को घोंसले बनाने में कठिनाई हो रही है।
गौरैया के विलुप्त होने के कारण
विशेषज्ञों के अनुसार, बढ़ते शहरीकरण, रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग, वनों की कटाई, मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन और बदलती जीवनशैली के कारण गौरैया की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है। पहले बड़े घरों में रोशनदान, लकड़ी के टांड और छज्जे होते थे, जो गौरैया के घोंसले बनाने के लिए अनुकूल थे, लेकिन अब आधुनिक मकानों में ऐसी संरचनाएँ नहीं हैं, जिससे गौरैया के आवास खत्म हो रहे हैं।
गौरैया बचाने की अपील
डॉ. बी. सी. एस. नेगी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि गौरैया की घटती संख्या गंभीर चिंता का विषय है और इसके संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं। डॉ. नेहा तिवारी पांडेय ने गौरैया के विलुप्त होने को बढ़ती आबादी और पर्यावरणीय असंतुलन से जोड़ा। डॉ. नरेंद्र पंघाल ने पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए गौरैया के संरक्षण को अनिवार्य बताया।
समाधान और संरक्षण के उपाय
विशेषज्ञों ने गौरैया के संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाए:
- गौरैया के लिए लकड़ी के घोंसले उपलब्ध कराना।
- बगीचों और खेतों में जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग।
- छोटे जल स्रोत और दाना उपलब्ध कराना।
- रेडिएशन कम करने और हरियाली बढ़ाने के प्रयास।
कार्यक्रम में भूगोल विभाग के समस्त छात्र-छात्राएँ और संकाय सदस्य उपस्थित रहे। गौरैया संरक्षण के इस आह्वान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ कि हर व्यक्ति अपने घर-आंगन में इस नन्ही चिड़िया के लिए स्थान बनाए ताकि इसकी चहचहाहट फिर से गूंज सके।