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संपादकीय: दृष्टिबाधा नहीं, दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है: रविराज की कहानी सफलता की नई परिभाषा

-लेखक(अंकित तिवारी)

जब समाज अक्सर शारीरिक क्षमताओं को सफलता का मापदंड मानता है, तब बिहार के नवादा जिले के रविराज जैसे लोग इस सोच को चुनौती देते हैं और एक नई राह दिखाते हैं। हाल ही में घोषित संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) 2024 के परिणामों में रविराज ने 182वीं रैंक प्राप्त कर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि इरादे बुलंद हों और दृष्टिकोण सकारात्मक हो, तो कोई भी बाधा मार्ग में दीवार नहीं बन सकती।

रविराज दृष्टिबाधित हैं, लेकिन उनकी दृष्टि सपनों की थी—उन सपनों की, जिनमें उन्होंने देश की सेवा करने का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने कठिन परिश्रम, आत्मविश्वास और धैर्य को अपना साथी बनाया। जहां एक ओर दुनिया उन्हें उनकी अक्षमता से आंक सकती थी, वहीं रविराज ने स्वयं को अपनी क्षमता से परिभाषित किया।

इस यात्रा में सबसे अहम भूमिका निभाई उनकी मां विभा सिन्हा ने, जो हर कदम पर उनके साथ खड़ी रहीं। एक मां का यह समर्पण, उसका विश्वास और संबल ही था जिसने रविराज को विपरीत परिस्थितियों में भी अडिग बनाए रखा। यह केवल रविराज की ही नहीं, एक परिवार के संघर्ष, धैर्य और अपार प्रेम की भी कहानी है।

रविराज की सफलता सिर्फ एक रैंक नहीं है, यह उन हजारों दिव्यांगजनों के लिए एक प्रेरणा है जो अपने सपनों को सामाजिक दायरों में सीमित समझ बैठते हैं। रविराज ने यह दिखा दिया कि सीमाएं शरीर की नहीं, सोच की होती हैं। उन्होंने यह प्रमाणित किया कि अगर दृष्टिकोण में दृढ़ता हो, तो दृष्टिबाधा भी दृष्टिवान बना सकती है।

आज जब हम समावेशी समाज की बात करते हैं, तो रविराज जैसे उदाहरण यह स्पष्ट करते हैं कि हमें न केवल नीतिगत बल्कि मानसिक स्तर पर भी समावेश को अपनाना होगा। दिव्यांगजनों को केवल सहानुभूति नहीं, अवसरों की समानता चाहिए—और रविराज की कहानी इस दिशा में समाज के लिए एक आईना है।

हम रविराज को उनकी अद्वितीय सफलता के लिए हार्दिक बधाई देते हैं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। साथ ही, यह अपील भी करते हैं कि ऐसे प्रतिभाशाली युवाओं को अवसर, संसाधन और सहयोग देकर हम एक अधिक समावेशी और सक्षम भारत का निर्माण करें।

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