ऋषिकेश(अंकित तिवारी)। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश में विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर एक व्यापक जनजागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य “ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (GINA)” की इस वर्ष की थीम “सभी के लिए इनहेल्ड उपचार को सुलभ बनाना” के अनुरूप अस्थमा के प्रति जागरूकता बढ़ाना और इसके प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करना था।
बाल रोग विभाग और आयुष विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में आधुनिक चिकित्सा पद्धति और पारंपरिक स्वास्थ्य उपायों के समन्वय पर विशेष जोर दिया गया। प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इस अवसर पर प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए समग्र अस्थमा प्रबंधन में एकीकृत चिकित्सा पद्धति के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने अस्थमा नियंत्रण में पारिवारिक सहभागिता की आवश्यकता पर भी बल दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत एक वेलनेस वॉक से हुई, जिसमें अस्थमा से पीड़ित बच्चों, चिकित्सा विशेषज्ञों और संकाय सदस्यों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रतिभागियों ने आयुष एकीकृत वेलनेस पार्क में सैर करके शारीरिक गतिविधियों को श्वसन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण बताया। इसके पश्चात, डॉ. प्रशांत कुमार वर्मा, प्रोफेसर लोकेश तिवारी, डॉ. मोनिका पठानिया और डॉ. व्यास कुमार राठौर द्वारा एक वैज्ञानिक सत्र आयोजित किया गया, जिसमें अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार विधियों और रोकथाम जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई। वक्ताओं ने अस्थमा प्रबंधन में परिवार के सहयोग, दवा के नियमित उपयोग, सकारात्मक पारिवारिक वातावरण और चिकित्सकों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखने पर विशेष जोर दिया।
आयुष विभाग द्वारा आयोजित मनोरंजक गतिविधियों और योग सत्र ने कार्यक्रम को और अधिक आकर्षक बना दिया। प्रतिभागियों को विशेष रूप से अस्थमा के लिए लाभकारी योगासनों का अभ्यास कराया गया, जो फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने और तनाव कम करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
डॉ. व्यास कुमार राठौर और डॉ. मान सिंह द्वारा इनहेलर के सही उपयोग पर एक संवादात्मक प्रदर्शन सत्र आयोजित किया गया, जिसमें इनहेलर के सही तरीके से इस्तेमाल, उसकी सुरक्षा और अस्थमा नियंत्रण में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट रूप से समझाया गया। जनसामान्य की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए एक प्रश्नोत्तर सत्र भी आयोजित किया गया।
एकीकृत चिकित्सा दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हुए, आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा के विशेषज्ञों डॉ. राहुल, डॉ. श्रीलॉय, डॉ. मृणालिनी और डॉ. श्वेता आदि ने घरेलू उपायों और हर्बल चिकित्सा विधियों की जानकारी साझा की, जो पारंपरिक उपचारों के साथ मिलकर अस्थमा प्रबंधन में सहायक हो सकती हैं।
समापन सत्र में कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने विश्व अस्थमा दिवस के अवसर पर बच्चों को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि यह पहल भारत में समेकित स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो एलोपैथी और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के समन्वय से रोगियों के स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने का मार्ग प्रशस्त करती है।